कुरआन में इस बात का एलान है कि इसका कोई अंश नष्ट न हो सकेगा, कभी इसके शब्द आगे-पीछे न हो सकेंगे।
अनुवादः
”निस्सन्देह यह जिक्र अर्थात कुरआन हमीं ने उतारा है और हम निश्चय ही इसे सुरक्षित रखेंगे।’ – सुरः हिज्र 9
As for the Admonition, indeed it is We Who have revealed it and it is indeed We Who are its guardians. ( Quran: 15:9)
بےشک یہ (کتاب) نصیحت ہمیں نے اُتاری ہے اور ہم ہی اس کے نگہبان ہیں (٩)
‘यकीनन यह एक किताबे अज़ीज़ है। बातिल (असत्य) न इसके आगे से इसमें राह पा सकता है, न इसके पीछे से।” – सूरः हाममीम सज्दा
‘किताबे अज़ीज़’ होने का अर्थ यह हुआ कि इसके वजूद को कभी होई हानि नहीं हो सकती, इस के सम्मान को कोई आघात नहीं पहुंचा सकता और इसका रूप और इस की हैसियत किसी भी परिवर्तन की पहुँच से परे है।
दुनिया कि हर किताब अपने मूल रूप में नहीं है सभी में इतने परिवर्तन हो चुके हैं कि कब क्या था यह जानना भी मुश्किल होगया। एकतरफ कुरआन है कि खुदा चैलेंज करता है कि इसमें कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता। सारी दुनिया मिल जाये हल्का सा फर्क अर्थात विभिन्नता करके दिखादे।
चैदह सौ वर्षां से इस्लाम दुश्मन सब तरह की कोशिश करके देख चुके, नाकाम रहे। आज भी ज्यूँ का त्यूँ है। जैसाकि मुहम्मद स. को लगभग 23 साल में याद कराया गया था।
कुरआन के बारे में खुली दावत है छानबीन करें। लगभग सभी भाषाओं में कुरआन का अनुवाद मिल जाता है। सबको चाहिए कि इसके औचित्य को जांचने और सच्चाई मालूम करने की कोशिश करे। बुद्धिजीवी किसी ऐसी चीज को नज़रन्दाज़ नहीं कर सकता, जो उसके शाश्वत राहत का सामान होने की सम्भावना रखती हो और छान-बीन के बाद शत-प्रतिशत विश्वास में निश्चित रूप से बदल सकती हो।
सोचिये क्या ऐसी वैज्ञानिक व बौधिक दलीलें किसी पुस्तक में मिलती हैं? जैसी कुरआन में हैं। नहीं मिलती तो मान लिजिये कि कुरआन ही निश्चित रूप से खुदाई कलाम अर्थात ईशवाणी है।
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कुरआन हिन्दी अनुवाद सहित
http://www.quranhindi.com/
क़ुरआन युनिकोड
http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/2:23
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quran in museum in turkey |
जैसा कि मुसलमान जानते हैं फरिश्ता जिब्राईल अ. मुहम्मद सल्ल. को कुरआन थोडा थोडा याद कराते थे वही आप अपने साथियों को याद करा देते, उसमें जो कातिब अर्थात लिखना जानते थे उस समय के तरीकों पर यानि हडडी खाल पत्थर आदि पर लिख लेते थे जिसे खलीफाओं ने जमा किया था, उस कुरआन की दो कापी आज तक सलामत हैं इस युग के कुरआन में आधुनिक इबुक फलैश या आज के छपे कुरआन में बात वही बस रंग रोगन के अलावा कोई नई बात नहीं,
23 साल तक चले इस याद कराने के सिलसिले में ध्यान दोगे तो पता चलेगा साथ साथ मुहम्मद साहब के हजारों साथी हाफिज तैयार हो चुके थे, और लगभग 23 साल में हर साल रमजान में रात की नमाज के बाद तरावीह Tarawih में पूरा कुरआन सुना जाता था, यानि उस साल जितना कुरआन अल्लाह ने जिब्राईल द्वारा भेजा वह सबके साथ दोहरा लिया जाता था, इस तरह से आपने आखिरी दो रमजान में दो बार पूरा का पूरा अपने साथियों को सुनाया,, जिसे साथियों ने याद कर लिया वो सिलसिला आज तक चला आ रहा है, हजारों हाफिज हर साल तैयार होते हैं
वही हाफिज भी कुरआन को बदलने की कोशिशों को नाकाम बनाने का एक जरिया है, जैसे ही कोई कुरआन में रद्दोबदल करके बाजार में बेचेगा फोरन मात्रा बिन्दी जैसे फर्क पकड लिया जाएगा
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महाराष्ट्र के अहमदनगर से पढ़ाई करने के लिए भोपाल आए एक बारह साल के विद्यार्थी ने 5 जुलाई को 12 घंटे में जुबानी पूरी कुरआन सुनाकर रिकार्ड बना दिया। |
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
narayan narayan
ब्लोगिंग जगत मे स्वागत है ।शुभकामनाएंभावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखेंhttp://www.zindagilive08.blogspot.comआर्ट के लिए देखेंhttp://www.chitrasansar.blogspot.com
यहां बात अल्लाह के चैलेंज पर किजिये कोई ''कुरआन में रद्दोबदल नहीं कर सकता''
शिया सुन्नी की बातें आपकी ठीक हैं, लेकिन यह शिक्षा की कमी अधिक है क्यूंकि हमें तो कुरआन से खुद को मुस्लिम बताने के लिये कहा गया है, कुरआन और मुहम्मद से इसकी कोई मिसाल नहीं मिलती, यह हमारी खता है जिसकी हमारी कौम सजा भी भुगत रही है,
अल्लाह मुहम्मद की बात मानने में ही हमारी भलाई है
अल्लाह कहता है''यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं॥(quran: 15:9)॥
आज भी सवा चौदह सौ साल बाद भी वही कुरआन हर जगह है जो जब था, आज भी दुनिया के किसी कोने में कोई रद्दोबदल कामयाब न हो सकी, आगे भी दुश्मनों के पास समय है अर्थात चैलेंज है रद्दो बदल कर दिखाओ, अल्लाह खुद कह रहा है 'हम इसके रक्षक हैं'
अल्लाह कहता है''यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं॥( कुरआन : 15:9)॥ इस बात का सहारा लेकर परिवर्तन करने वालों को मौत के घाट उतारा जा सकता है ?
फिलहाल
इस बात से यह स्पस्ट है कि जब भी परिवर्तन होता है तो अल्लाह ( ईश्वर ) ही कराता है . कुरआन से पहले भी अल्लाह की ही व्यवस्था (धर्म) थी.अल्लाह परिवर्तन कराता इंसानों के द्वारा है .जिस बात के लिए अल्लाह ने इस्लाम सारी दुनियां के लिए मुकरर किया आज सवा चौदह सौ साल बाद हालात बद से बत्तर ही हैं.बल्कि मुहम्मद सल्ल. के समय जैसे ईमान वाले लोग थे वैसे अब शायद ही हों.
भारतीय धार्मिक ग्रन्थ ” श्रीमद भगवद गीता” में ईश्वर (अल्लाह ) ने अपने आने की बात कही है. जब सभी धर्म अपने मूल मकसद (विश्व में शांति ) में नाकामयाब हो जातें है तब अल्लाह को आना ही पड़ता है.
हालाकिं ” श्रीमद भगवद गीता” भक्ति मार्ग की किताब है और सच्चाई आटें में नमक के बराबर है .
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jaisaa ham sunate hai, allaah sarvashaktimaan hai aur sab jaanataa hai to……..
shaashwat satya baat ke liye allaah ko chelenj karane kee kyaa aavashyaktaa paDee. sarvashaktimaan allaah ke nirvivaad satya ko koun chelenj kar sakataa hai.at: chunoutee dene waalaa koee aur hee hai,jise yah chintaa lagee hee rahatee hai, pataa nahiM log ise sach maneMge yaa nahiM.
chunoutee dene waalaa swayaM saMshayagrast haiM.
sugya – जैसा कि हम जानते हैं कुरआन में सब कुछ है यह चैलेंज उनके लिये हैं जो अल्लाह का होना नहीं मानते, यह सर्व शक्तिमान की शक्ति ही है कि सारी दुनिया मिल जाओ यह कर के दिखा दो, समय सीमा भी नहीं दुनिया के अन्त तक कभी भी कर के दिखा दो,,
खेर और चैलेंज पर भी आओ
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विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
(इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
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kairanvi, answer to oracle_22 only.
@oracle_22 – कुरआन का लिखे पे इतना जोर तब था न अब है, मुहम्मद के समय में कुरआन की क्या पोजिशन थी उसका तुम्हें पोस्ट से जवाब मिलेगा, इन्शाअल्लाह
जैसा कि सभी जानते हैं जिब्राईल अ. मुहम्मद सल्ल. को कुरआन थोडा थोडा याद कराते थे वही आप अपने साथियों को याद करा देते, उसमें जो कातिब लिखना जानते थे उस समय के तरीकों पर दस्तयाब हडडी खाल पत्थर आदि पर लिख लेते थे जिसे खलीफाओं ने जमा किया था, उस कुरआन की दो कापी आज तक सलामत हैं इस युग के कुरआन में उसमें रंग रोगन के अलावा कोई नई बात नहीं
23 साल तक चले इस याद कराने के सिलसिले में ध्यान दोगे तो पता चलेगा हजारों हाफिज तैयार हो चुके थे, और 23 साल में हर साल रमजान में रात की नमाज के बाद तरावीह में पूरा कुरआन सुना जाता था, यानि उस साल जितना कुरआन अल्लाह ने जिब्राईल द्वारा भेजा वह सबके साथ दोहरा लिया जाता था, जो सिलसिला आज तक चला आ रहा है,
तो मेरा जवाब है मुहम्मद साहब के समय हजारों हाफिज तैयार हो चुके थे वही हाफिज इसकी आज तक इसे बदलने की सभी कोशिशों को नाकाम बनाने का एक जरिया है
दूसरी बात उस समय तो क्या चेंज होता जब सहाबी थे जिनके ईमान की मिसालों से हम सबक लेते हैं, आज भी सारी दुनिया मिल जाओ और 114 छोटे बडे नमूने तुम्हारे सामने हैं चेंज करके दिखा दो इस्लाम हार जायेगा
आसान शब्दों में कहूं तो 114 में मिलावट के लिये आज भी 1 सूरत बना लो फिर उसे मिलाने की कोशिश की जायेगी, आज भी नाकाम कल भी नाकाम, खुदा की शान
सारी दुनिया की नालायकी इस्लाम को हराने का इतना छोटा सा चैलेंज कबूल न कर सकी
तो मेरी भटकी हुई बहन के भाई कुरआन में change करने के लिये 1 सूरत भी न तब बनायी जा सकती थी न अब बनायी जा सकती, न खुद मुहम्मद सल्ल. बना सकते थे, यानि न कल बनायी जा सकती, कयामत तक का अभी भी समय है बना लो ताकि उसे 114 में मिलाया जाये
आओ मिलाने के लिये मैं भी तुम्हारी मदद करूं, देख लो 1 सूरत कितनी छोटी भी होती है ताकि कम से सबसे छोटी जैसी ही तैयार करवा सको
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
ok
boss now as per Qur'an namaz is compulsory for 50 time at a day now you reduce it by 5 time this is a first change and your rasul break the rule of Qur'an the rule is only 4 marriage is illegal but he marry to 9 girl and last one aayesha is only 9 year old at that time so do you want to say any think about this
NIKHILESHDUBEY कुरआन की नीचे दी गयी आयतों से पांच वकत नमाज साबित होती है, 50 बार कुरआन में कहां है? जिसे 5 बार में बदल गया हो?
Quran 17:78
नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़ः के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है
5:6
ऐ ईमान लेनेवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टखनों तक धो लो।
11:114
और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है
24:58
ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हो और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे है, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसे अनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आराम के लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात
A Study of her age at the time of her marriage with Prophet Muhammad. This investigation shows that the nikah of Aishah to the Prophet of Islam took place when she was around 16-17 years old, and not 6; and her marriage was solemnized when she was 19 and not 9. (By Ruqaiyyah Waris Maqsood).
http://www.ilovezakirnaik.com/madamayeshah/index.htm
Sr Ruqaiyyah Waris Maqsood (born 1942, is a British Muslim author, who served as Head of Religious Studies at William Gee High School, Hull, England. Her name was Rosalyn Rushbrook. she was a devout Christian. who earned a degree in Christian theology in 1963 at Hull University)
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Third Research work
Booklet : Why did Prophet Muhammad Marry Aisha; the Young Girl
http://www.rasoulallah.net/v2/document.aspx?lang=en&doc=11029
इटली देश की लेखिका 'लोरा वेस्सिया वागलियेरी'(L.VecciaVaglieri)अपनी पुस्तक इस्लाम का दिफा प्रतिरक्षा में लिखती हैः “मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी पूरी जवानी के दिनोंमें जबकि लैंगिक इच्छा अपनी चरम सीमा पर होती है और जबकि आप ऎसे समाज -अरब समाज-में रह रहे थे जहाँ शादी एक समाजी संस्था के रूप में अनुपस्थित थी और जहाँ अनेक बीवियों से शादी करना ही नियम था और तलाक़ देना अत्यंत सरल था, इसके बावजूद आप ने केवल एक औरत से शादी की। वह खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा हैं जिनकी आयु पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आयु से बहुत बड़ी थी, और आप पचीस साल तक उनके मुख्लिस और प्रिय पती रहे, और दूसरी शादी उस समय तक नहीं की जब तक खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा की मृत्यु न हो गई और आप की आयु पचास साल को पहुंच गई। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इन शादियों में से हर एक शादी का कोई न कोई राजनीतिक या समाजी कारण अवश्य था, जिन औरतों से आप ने शादियाँ कीं उसका उद्देश्य परहेज़गार औरसदाचारी औरतों को सम्मान देना और कुछ क़बीलों और खानदानों के साथ वैवाहिक संबंधस्थापित करना था ताकि इस्लाम को फैलाने के लिए एक नया रास्ता निकाल सकें। केवल आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा को छोड़ कर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऎसी महिलाओंसे शादियां कीं जो कुंआरी, जवान और सुंदर नहीं थीं, तो क्या आप एक शहवानी (कामुक औरशहवत परस्त) व्यक्ति थे? आप एक मनुष्य थे पूज्य नहीं थे। नई शादी करने का कारण यह भी हो सकता है कि आप को औलाद की इच्छा रही हो…आप के पास आय के कोई अधिक साधन नहींथे इसके बावजूद आप ने एक भारी परिवार का आर्थिक बोझ अपने कन्धे पर उठा लिया औरहमेशा उन सब के साथ पूरी बराबरी के साथ निबाह किया और कभी भी उन में से किसी के साथअंतर और भेद भाव का रास्ता नहीं अपनाया। आप ने पिछले पैग़म्बरों जैसे मूसा अलैहिस्सलाम आदि के आदर्श पर चलते हुए काम किया जिनके अनेक शादियों पर आपत्ति(एतिराज़) करने वाला कोई नहीं। तो क्या मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम केबहुविवाह की आलोचना करने का यही कारण रह जाता है कि हम दूसरे पैग़म्बरों के दैनिक जीवन के विवरण नहीं जानते हैं जबकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के परिवारिक जीवन की एक एक चीज़ जानते हैं?”
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरआन की हर तालीम पर अमल किया है और दूसरों को भी सिखाया है, एक क़ुरआन के एक भी हुकम से हम इधर-उधर नहीं हो सकते अल्लाह की हर बात हमें कुबूल,
मुहम्मद साहब के लिए जब तलाक देने और निकाह करने के लिए रोक दिया गया, उसके बाद आपने न निकाह किया, और तलाक तो किसी को दी ही नही इस हुकम से पहले भी
Quran 33:52
इसके पश्चात तुम्हारे लिए दूसरी स्त्रियाँ वैध नहीं और न यह कि तुम उनकी जगह दूसरी पत्नियाँ ले आओ, यद्यपि उनका सौन्दर्य तुम्हें कितना ही भाए। उनकी बात औऱ है जो तुम्हारी लौंडियाँ हो। वास्तव में अल्लाह की दृष्टि हर चीज़ पर है
Not lawful to you, [O Muhammad], are [any additional] women after [this], nor [is it] for you to exchange them for [other] wives, even if their beauty were to please you, except what your right hand possesses. And ever is Allah, over all things, an Observer. (Quran 33:52)
NIKHILESH DUBEY जी जल्दी से इस चैलेंज पर आयें, इधर-उधर समय नष्ट करने से अच्छा है Great Challange पर पहुंचे
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
सुब्हान अल्लाह
mai ne ek baar pravachan me suna tha ke sallahe valehi rassallam aur us ke baad aur nabi aaye aur namaz ke sankhya ko har baar 5 kam karte gaye
aur aab tum kuchh aur hi bol rahe ho
majra kya hai maine to galat nahi suna tha aur agar aapne galat nahi likha hai to kya kuraan me har sura ka 2 meaning hai ?
मुहम्मद साहब आखरी रसूल थे, उन्हीं पर quran २३ साल में उतरा यानी उन्हें याद कराया गया, जब quran ही मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसलम पर आया यही नमाज़ में पढ़ा जाता है तो उनसे पहले कुर आन केसे पढ़ा जा सकता था?
quran se mutaliq aap wikipedia men Hindi wala padhen, Hindi wale ke men aasani se jawab de sakoonga
मुहम्मद साहब को आखरी सन्देश टा और आखरी नबी, अंतिम अवतार भी कहा जाता हे.. थोडा आप इस वेबसाइट से समझ सकेंगे
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्थ — डा. एम. श्रीवास्तव
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना
http://antimawtar.blogspot.com/2009/06/blog-post_22.html
आपके सवाल पोस्ट से मुतालिक नहीं हें,, ऐसी जानकारी आप फसबूक पर मुझ से ले सकते हें…
मेरा पता हे
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